स्वामी सहजानंद सरस्वती | Swami Sahajanand Saraswati

स्वामी सहजानंद सरस्वती (Swami Sahajanand Saraswati) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक किसान नेता, संत, एवं राष्ट्रवादी नेता थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले में हुआ। स्वामी सहजानंद सरस्वती ने खासकर बिहार में किसान आंदोलनों और किसान जागृति पर अपना बढ़ चढ़ कर योगदान दिया। अखिल भारतीय किसान सभा के गठन में इन्होने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रजों द्वारा किसानों का शोषण देखकर इनका ह्रदय द्रवित हो उठा। इसके समाधान के लिए स्वामी सहजानंद ने कई कार्य किये। इन्होने बिहार की राजधानी बिहटा के समीप अपने आश्रम का निर्माण किया जहाँ पर यह सामाजिक कार्यों में लीन रहे। इस लेख के जरिये हम आपको स्वामी सहजानन्द सरस्वती के बारे में बताएंगे।

Swami Sahajanand Saraswati

स्वामी सहजानंद सरस्वती की कुछ प्रमुख बातें

नाम स्वामी सहजानंद सरस्वती, नौरंग राय
जन्म की तिथी22 फ़रवरी 1889
जन्म स्थानग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश
मृत्यु की तिथी26 जून 1950
मृत्यु का स्थानबिहटा, पटना बिहार
जाने जाते हैंसंत, स्वतंत्रता सेनानी, इतिहासकार,
किसान आंदोलन के प्रणेता, दार्शनिक
,
अथवा समाज सुधारक के रूप में
श्रेणीबिहार की प्रमुख हस्तियां
प्रमुख पुस्तककिसान सभा के संस्मरण, जंग और राष्ट्रीय आज़ादी,
हुंकार, भूमिहार ब्राह्मण परिचय, मेरा जीवन संघर्ष,
क्रांति और संयुक्त मोर्चा, गीता ह्रदय, महारुद्र का महाताण्डव,
करमाकल्प, इत्यादि

Swami Sahajanand Saraswati का शुरू का जीवन

स्वामी सहजानन्द सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर जिला के देवा गाँव में 22 फ़रवरी 1889 को महाशिवरात्रि के दिन भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ। वह छह भाइयों में सबसे छोटे भाई थे। संत बनने के पहले उनका सामाजिक नाम नौरंग राय था। उनके पिता का नाम बेनी राय था। उनकी माँ का देहांत उनके जन्म के कुछ ही समय बाद हो गया। इसकी वजह से उनका पालन पोषण उनकी चाची के देखरेख में हुआ।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश राज्य में ही हुई। वह मेधावी छात्रों की श्रेणी में गिने जाते थे। सरकार की तरफ से नौरंग को छात्रवृत्ति भी मिल गयी। अब उनका झुकाव अध्यात्म की और होने लगा। घरवालों ने शादी भी कराई लेकिन उनकी पत्नी शादी के एक साल बाद ही चल बसीं। अब नौरंग ने काशी जाने का मन बनाया।

नौरंग राय से स्वामी सहजानंद बने

नौरंग राय घर बार छोड़कर काशी चले गए। उन्होंने काशी जाकर शंकराचार्य पंथ में दीक्षा ग्रहण की और सन्यासी बन गए। सन्यास लेने के बाद अथवा स्वामी अद्वैतानन्द से दीक्षा ग्रहण करने के बाद वह नौरंग राय से सहजानंद सरस्वती बने। सन्यासी होने के बाद उन्होंने हिन्दू ग्रंथों का गहन अध्ययन किया और समाज में कई कुंठाओं को तोड़ने का काम भी किया। काशी और बिहार के दरभंगा जिले में संस्कृत साहित्य, हिन्दू दर्शन एवं व्याकरण का भी अध्ययन किया। उन्होंने समाज के निचले वर्गों के उद्धार के लिए भी कार्य किये।

स्वामी सहजानंद सरस्वती और किसान आंदोलन | Swami Sahajanand Saraswati and The Kisan Movement

स्वामी सहजानंद सरस्वती को भारत में किसान आंदोलन का जनक कहा जाता है। अंग्रेज़ो और अन्य अधिकारीयों का किसानो के प्रती रवैया देखकर और इनके द्वारा किसानों का शोषण देखकर स्वामी सहजानंद सरस्वती का ह्रदय द्रवित हो उठा। इन्होने किसानो को जागृत करने और किसानों को उनके अधिकारों से अवगत कराने को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। भारत में किसान आंदोलन को खड़ा करने का श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को जाता है।

जब महात्मा गाँधी के आगाज़ से सन 1920 में असहयोग आंदोलन रफ़्तार पकड़ रहा था और बिहार में भी इसके लिए लोगों में जागृति आ रही थी, उस समय सहजानंद सरस्वती बिहार में घूम घूम कर लोगों को जगा रहे थे। बिहार भ्रमण के दौरान उन्हें ये एहसास हुआ की यहाँ के किसान अंग्रेज़ों और अन्य अधिकारीयों के द्वारा सताए जा रहे हैं।

किसानों की ऐसी स्थिति देखकर स्वामी सहजानंद ने किसानों को एकजुट करके उनके अधिकार प्राप्ति के लिए संघर्ष करने का सोचा। सन 1927 में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने पश्चिमी किसान सभा को गठित किया। स्वामी सहजानंद,नवम्बर 1928 को बिहार के सोनपुर की एक किसान सभा में शामिल हुए। सन 1929 में, सहजानंद सरस्वती ने बिहार प्रांतीय किसान सभा का गठन किया। तदुपरांत अप्रैल 1936 में उन्हें कांग्रेस के लखनऊ सेशन में अखिल भारतीय किसान सभा का अध्यक्ष चुना गया।

उनका कहना था की ‘अधिकार हम लड़ कर लेंगे और जमींदारी का खात्मा करके रहेंगे’। उन्होंने रोटी को भगवान कहा और रोटी उपजाने वालों को भगवान से बढ़कर बताया। उन्होंने ‘जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा, अब सो कानून बनायेगा ये भारतवर्ष उसी का है, अब शासन वहीं चलायेगा’ और ‘कैसे लोगे मालगुजारी, लठ हमारा जिन्दाबाद’ का नारा दिया। सन 1934 में जब बिहार प्रलयकारी भूकंप से पीड़ित हुआ उस समय स्वामी सहजानंद ने राहत और घर बेघर हुए लोगों के पुनर्वास के लिए काफी काम किया।

Swami Sahajanand Saraswati and Congress

इन्होने कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानिओं के साथ मिलकर लोगो के उत्थान के लिए कई कार्य किये। स्वामीजी की कांग्रेस के साथ गतिविधयां शुरू हुई जब उन्होंने पटना में दिसंबर 1920 में कांग्रेस नेता मौलाना मज़हरुल के साथ साथ महत्ता गाँधी से मुलाकात हुई। वह गाँधीजी के आग्रह पर कांग्रेस में शामिल हुए और कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में उपस्थित हुए। स्वामी जी ने कांग्रेसी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में, सन 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया। बाद में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर एक ‘स्वतंत्र’ किसान सभा का भी गठन किया।

सहजानंद अंततः एक गैर-दलीय व्यक्ति बने रहे और उनकी वफादारी केवल उन किसानों के प्रति थी जिनके उत्थान के लिए वे सबसे अधिक प्रयासरत थे।

निष्कर्ष

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने एक संत होने के बावजूद किसानों के हित में अंग्रेज़ो और ज़मींदारों को खूब लताड़ लगायी और उन्हें शोषण के खिलाफ संघर्ष करने की प्रेरणा दी। स्वामीजी की मृत्यु बिहार की राजधानी पटना के पास के शहर बिहटा में उनके अपने आश्रम में हुई जहाँ पर वह अपने अंत समय में भी समाज जागृति के कार्यों में व्यस्त रहकर गुज़र रहे थे। स्वामीजी ने भारत के किसानो के संघर्ष और उनके अधिकारों की लड़ाई में अहम् भूमिका निभाई और अपने जीवन को इसी उद्देश्य में समर्पित कर दिया।

आज़ादी के बाद की बानी भारतीय सरकारों ने स्वामी सहजानंद सरस्वती के सम्मान में कई भेंट जारी किया है। जैसे की भारत सरकार ने जून 2000 में स्वामीजी की स्मृति में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 2001 में स्वामीजी के सम्मान में ‘स्वामी सहजानंद सरस्वती वैज्ञानिक/कार्यकर्ता पुरस्कार’ की स्थापना की।

FAQ

बिहार में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किस आंदोलन की शुरुआत की थी?

बिहार में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसान आंदोलन की शुरुआत की थी

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किस हिंदी पत्रिका का प्रकाशन किया?

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने हुंकार हिंदी पत्रिका का प्रकाशन किया

अखिल भारतीय किसान सभा का गठन कब किया गया ?

अखिल भारतीय किसान सभा का गठन 1936 में किया गया

बिहार प्रांतीय किसान सभा का गठन कब किया गया ?

बिहार प्रांतीय किसान सभा का गठन 1929 में किया गया

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