जैसा की हम जानते हैं महात्मा गाँधी का चम्पारण सत्याग्रह उनका भारत देश में चलाया गया पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन था। इसके लिए गाँधी 1917 में चम्पारण आए और कई बिहार के नेताओं से भी मिले। यह आंदोलन मुख्यतः अंग्रेज़ों द्वारा नील की खेती कर रहे किसानो के शोषण के विरुद्ध था। गाँधी यह आंदोलन सफलता पूर्वक चला रहे थे और उनकी लोकप्रियता क्षेत्र में बढ़ती जा रही थी। इसी दौरान अंग्रेज़ गाँधी के इन गतिविधियों से परेशान थे और उनपर लगाम लगाने के फिराक में रहते थे। यहीं पर एक नाम आता है बतख मियां का जो की इतिहास के पन्नो में तो बहुत प्रचलित नहीं हो पाए लेकिन ऐसा माना जाता है की इस आंदोलन के दौरान अंग्रेज़ो के पुरज़ोर दबाव के बावजूद भी बतख मिआं (Batak Mian) ने अपना ईमान नहीं गंवाया जिसकी वजह से गाँधी और उनके सहयोगियों की जान बच पायी।

बतक मिआं कौन थे | Who was Batak Mian
बतख मियां चम्पारण में कुक, बावर्ची या रसोइया थे। बतख मियां के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ कहानियों के अनुसार वह गांधीजी और उनके अनुयायिओं के लिए चम्पारण सत्याग्रह के दौरान खाना बनाते थे। अन्य मान्यताओं के अनुसार वह किसी अंग्रेज़ के रसोईया थे।
बतख मियाँ पर अंग्रेजों का दबाव
गाँधी के क्षेत्र में लोकप्रियता की वजह से और चम्पारण में सत्याग्रह को जड़ जमता देखकर अंग्रेज़ों को इस आंदोलन के दमन का उपाय ढूंढना था। एर्विन नामक एक नील के मैनेजर ने बतख मियां पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कभी रिश्वत की लालच देकर तो कभी धमका कर। एक कथा के अनुसार अंग्रेज़ों ने बतख मियां को गाँधी और उनके सहयोगियों के भोजन में जहर मिलकर मार डालने के लिए कहा।
वहीँ दूसरी कथा के अनुसार चम्पारण में रहने के दौरान गांधी को एक अंग्रेज इरविन (जो एक नील बागान का प्रबंधक था) से रात के खाने का निमंत्रण मिला। इरविन का इरादा था की गांधी को जहर मिला दूध का गिलास परोस कर खत्म कर दिया जाये और यह कार्य उसने अपने रसोइए बटक मियां को सौंपा था। समय आने पर बटक मियां ने गांधी को दूध का गिलास पेश किया, लेकिन उन्होंने गाँधी के दूध पीने से पहले इसमें मिलाये गए जहर के बारे में बता दिया। ऐसा करके उन्होंने गाँधी की जान बचा दी और आगे चलकर गाँधी चमपारण सत्याग्रह को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचा पाए।
इसका परिणाम क्या हुआ
बतख मियां को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। उन्हें काम से बर्खास्त कर दिया गया, सलाखों के पीछे डाल दिया गया और प्रताड़ित किया गया। मोतिहारी के पास एक गांव सिसवा अजगरी में उनके घर और जमीन की नीलामी कर दी गई और उनके परिवार को गांव छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
डॉ राजेंद्र प्रसाद और बतक मियां
भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उस समय पूरे प्रकरण को देखा था और वह इस घटना से पूरी तरह अवगत थे। 1950 में, डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मोतिहारी, बिहार का दौरा किया। उन्हें एक छोटी सी सभा को संबोधित करना था। उनके स्वागत के लिए रेलवे स्टेशन पर भीड़ उमड़ी हुई थी। ट्रेन से उतरते ही राजेंद्र प्रसाद ने प्रवेश द्वार के पास चहलकदमी अनुभव किया। उन्होंने देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति उनकी ओर आने का प्रयास कर रहा है। राजेंद्र प्रसाद ने उस व्यक्ति को तुरंत पहचान लिया और उसके पास जाकर उसे गले लगा लिया। उन्होंने स्टेशन पर कड़ी भीड़ से कहा कि यह बतक मियां हैं, जिन्होंने गांधीजी की जान बचाई थी। तब जाकर बतक मियां को व्यापक तौर पर लोगों ने जाना।
Batak Mian FAQ
जिन्होंने चंपारण सत्याग्रह के दौरान बिहार में गांधीजी की जान बचाई थी वह कौन थे?
जिन्होंने चंपारण सत्याग्रह के दौरान बिहार में गांधीजी की जान बचाई थी उनका नाम बतक मियां था।
बतक मियां कहाँ के रहने वाले थे?
बतक मियां बिहार के मोतिहारी जिले के रहने वाले थे.
बतक मियां का नाम किस सत्याग्रह के सिलसिले में लिया जाता है?
बतक मियां का नाम चम्पारण सत्याग्रह के सिलसिले में लिया जाता है.